
जितना पनीर, मावा, दूध, दही बिकता है, उतना दूध उत्पादित होता है क्या ??
- नकली दूध का कारोबार देश की बड़ी समस्या बनी हुई है
- बीकानेर भी उसकी जद से बाहर नहीं रहा
- दूध से बनने वाला पनीर, मावा, दही फिर इतना बिकता कैसे है?
- इस जानलेवा मिलावट को लेकर स्वास्थ्य महकमा लापरवाह कैसे ?
- नकली दूध पर प्रशासन की सर्जिकल स्ट्राइक अब जरूरी
रितेश जोशी
RNE Special.
कुछ रोजमर्रा के दृश्य
1… पहले हर घर में यार पनीर की सब्जी बनती ही नहीं थी। अब तो हजारों लोगों के खाने की शादी में पनीर की सब्जी बनती है। हर होटल में एक सब्जी पनीर की होती है। जगह जगह पनीर मिलता है। थोक में चाहो जितना पनीर मिलता है।
सवाल… पनीर सस्ता भी नहीं। फिर इतना पनीर बनता कैसे है। इतना दूध शहर या गांवों में होता है क्या?
2… दही की दुकानें हर गली, बाजार में है। हर शादी में दही से बने खाद्य प्रचूर मात्रा में होते है। गर्मियों में सबसे अधिक दही की लस्सी बिकती है। दही हर घर की थाली में है।
सवाल…. इतना दही बिकता है और मिलता है। उसके लिए बीकानेर में इतने दूध का उत्पादन होता है क्या ?
3… दूध से बनने वाली मिठाईयों जैसे रबड़ी, कलाकंद, रसमलाई, राजभोग , खीर चमचम, रसगुल्ला, खीर मोहन, खुरमाणि, गुलाब जामुन आदि, बेहद खाई जाती है और बिकती है। शादियों में भी एक मिठाई छीने की होती है, जो दूध से बनती है।
सवाल… इतनी दूध व छीने की बनने वाली मिठाईयों जितना दूध बीकानेर में उत्पादित होता है क्या ?
4… बीकानेर मिठाईयों व नमकीन का शहर है। प्रचूर मात्रा में लोग इनका सेवन करते है। छीने की मिठाई तो सीधे दूध से बनती है, उसके बाद जितनी भी मिठाईयां बनती है वो मावे बिना नहीं बनती। दिलखुशाल, मोतीपाक, दाल का हलुआ, जैसी मिठाईयां बिना मावे के नहीं बनती। ये बीकानेर में खूब बनती है। खूब बिकती है।
सवाल… मावा केवल दूध से बनता है। मावा प्रचूर मात्रा में हमारे शहर में बिकता है। मिठाईयों में काम में लिया जाता है। मावा बनाने जितना दूध बीकानेर में होता है क्या ?
5… बीकानेर वासी कसरत के शौकीन है। यहां प्रचूर मात्रा में दूध पीने का प्रचलन है। शहर के भीतरी इलाके में कड़ाही का दूध बेचने वाले प्रचूर मात्रा में है और उनके यहां भीड़ भी खूब रहती है।
सवाल… क्या इतनी जगह काम आ जाने के बाद भी दूध पीने जितना दूध बीकानेर में उत्पादित होता है ?
ये बात एक साधारण इंसान की:
उपरोक्त सभी दृश्य और सवाल वाजिब है। जो एक कम पढ़े लिखे मगर जीवन के 40 वसंत पार कर चुके महेश काका ने मुझसे पूछे। मैं निरुत्तर था। क्योंकि सवाल वाजिब थे और मेरे पास ठोस जवाब नहीं था। बात सोचने की थी। पहले तो हर घर में गाय पाली जाती थी, अब शहर में तो ये रहा नहीं। कम लोग ही गाय पालते है। गांवों में गायें पाली जाती है। फिर इतना दूध बीकानेर में आता कैसे है, ये सवाल तो बनता है।
नकली दूध उत्पाद पकड़ा गया:
जब उत्तर प्रदेश, दिल्ली, फिर राजस्थान के कई इलाकों में नकली मावा, नकली पनीर पकड़ा गया तो लोग चकित रह गए। मतलब नकली दूध भी बनाया जा सकता है। देश के कई शहरों में नकली दूध पकड़ा गया। तब इस भयावह मिलावट के कारोबार का पता चला।
नकली देशी घी भी खूब पकड़ा:
बीकानेर सहित देश के कई जिलों में नकली देशी घी थोक में पकड़ा गया। ये असली घी गाय या भैस के दूध से बनता है। मगर इसे भी नकली बनाने का रास्ता मिलावटखोरों ने ढूंढ लिया।
मानव जाति के लिए ये बड़ा खतरा:
नकली दूध मानव जाति के लिए बड़ा खतरा है। ये बात चिकित्सक कहते है। बीमार आदमी को स्वस्थ करने के लिए दूध दिया जाता है, जो शक्ति देता है। वही नकली होगा तो फिर बीमारी ठीक कैसे होगी। इससे कई बीमारियां होने की बात भी डॉक्टर बताते है। ये मिलावट मानवता के लिए बड़ा खतरा है।
बीकानेर में ये समस्या बड़ी हो गई:
अब नकली दूध व उससे बनने वाले उत्पाद की मिलावट की समस्या बड़ी हो गई है। जिसका असर भी दिखने लगा है। कईयों ने तो मावे की मिठाईयों तक को छोड़ दिया है। दूध व दूध उत्पादित चीजों को लेकर लोगों में डर बैठ गया है।
स्वास्थ्य महकमा सो कैसे रहा है:
स्वास्थ्य विभाग का भरापूरा विभाग बीकानेर में भी है। जोइंट डायरेक्टर, सीएमएचओ जैसे बड़े अधिकारी है। मिलावट पर प्रहार की विंग है। उनकी आंखों से सामने ये सब हो रहा है। जब एक आम आदमी के मन में ये सवाल उठ सकते है तो उनके मन में क्यों नहीं उठते। बीकानेर के हर नागरिक के स्वास्थ्य की सुरक्षा का जिम्मा तो उनके पास ही है।
कलेक्टर साहिबा! आप दखल दें:
अब तो लोग कहने लग गये है कि मिलावट के इस घिनोने व्यापार पर प्रहार करने के लिए जिला कलेक्टर को ही दखल देना होगा। उनको ही अब स्वास्थ्य विभाग की लगाम अपने नागरिकों के हित मे खींचनी होगी। तभी उनका शहर व शहरवासी महफूज रह सकेंगे।
मिलावट पर सर्जिकल स्ट्राइक हो:
अब वक्त आ गया है जब दूध व दूध के उत्पादों की इस मिलावट को रोकने के लिए सर्जिकल स्ट्राइक हो। जो सही है वो तंग न हो और मिलावटखोर, लोगों की जान से खेलने वाले पकड़े जायें।